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मंगल स्तुति

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  मंगल स्तुति मंगलाचरण  गुरुस्तुति ब्रह्मरूप आनंदघन, निर्विकार निर्लेव । मंगलकरण दयालजी, तारण गुरु शुकदेव ॥ सतियन में तुम सत्य हो, शूरण में हो वीर । यतियन  में तुम यती हो, श्री शुकदेव गंभीर ॥ पतित उधारण तुम लखे, धरम चलावन भेव । संकट सकल निवारिये, जै जै श्री शुकदेव ॥ चिंता मेटन भयहरण, दूरि करण जग व्याध । गुरु शुकदेव कृपा करो, चरण लगे सब साध ॥ दाता चारों भेद के, श्री शुकदेव दयाल । "चरणदास" पर हूजिये, बारम्बार कृपाल ॥ *********************************************************** श्री शुकदेव जी महाराज का अष्टक षोडश वर्ष किशोर मूरति, श्याम वरण दिगम्बरं । घूंघर वाले केश झलके, (श्री) शुक्मुनि चरण प्रणाम्यहं ॥ पदम आसन उदर त्रिवली, चरण पंकज शोभितम । आजानुभुज मुस्कात मुखसो, श्री शुक्मुनि चरण प्रणाम्यहं ॥ गुढ़जत्रु विशाल उर छवि, नाभि गंभीर विराजितं । जलज लोचन सुखद नासा, (श्री) शुक्मुनि चरण प्रणाम्यहं ॥ श्री व्यासनंदन जगत वंदन, मोह ममत्व निकन्दनं । काम क्रोध मद लोभ न जिनमे, (श्री) शुक्मुनि चरण प्रणाम्यहं ॥ ब्रह्मरूप अनूप मुनिवर, पराशर कुलभूषणम । श्री कृष्ण चरित पुनीत वरनत, (श्री) शुक्मुनि